Wednesday 17 June 2015

करवाचौथ – दिन पत्नियों का ! मौज पतियों की !

करवाचौथ ! पति के लिए अमृत समान एक ऐसा दिन जिस दिन बीवी अपना हथियार यानि बेलन नहीं उठा सकती ! उस दिन का बीवी के साथ साथ पति भी बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं ! बीवी देवी का रूप हो तो नार्मल दिन है ही ! उस दिन की अहमियत तो उनके लिए स्वर्ग में बिताये एक दिन की तरेह है जिनकी बीवी खतरनाक, खलनायिका, खूंखार, उग्र, चुड़ैल, चाण्डालिनी का रूप लिए रखती हैं ! किन्तु उस दिन सब शांत, नम्र, सावित्री, देवी का रूप लिए होती हैं ! उस दिन आप राजा होते हो और वो आपकी दासी !

करवाचौथ के दिन पत्नी जी भरकर दुआ करती है ! हे प्रभु ! इनकी दीर्घायु की कामना करती हूँ ! पुरे वर्ष ये इसी तरेह मेरे ताने सुनते रहें वा बेलन खाते रहें ! इस गायें रुपी पति को कम से कम मेरे जितनी उम्र तो दे ही दे ! ताकि इसी तरेह कमा कमा कर ये गाय रुपी पति मुझे खिलाता पिलाता रहे और मुझे शोपिंग के पैसे मिलते रहें ! वैसे भी मिलते क्या रहें ? कमाता रहे तो पैसे तो अपने आप ले ही लुंगी ! पर आज नहीं ! आज माफ़ किया !

पति भी आज तक हैरान परेशान हैं की आज के दिन ऐसा हुआ क्या था जो हमें इतनी छूट मिल जाति है ! और उस पर उस दिन व्यंजन अलग से खाने को दे दिए जाते हैं ! पति भी खुश ! चल इतने पैसे खर्च के यदि एक दिन ताने और मार की जगह थोडा दुलार मिल रहा है तो कोन सा महंगा है ? थोडा सजने सवारने और खाने पीने में लगता ही क्या है ?

रूप श्रंघार ऐसा की खुद पति भी पहचान नहीं पाते की बीवी अपनी है या किसी और की ! चूड़ी, बिंदी, सिन्दूर, नयी महंगी साडी, सबकुछ ब्रांडेड व नया ! रात रात भर बैठकर हाथों में मेहँदी लगानी भी जरुरी है ! एक रात पहले का नज़ारा आप देखेंगे तो पायेंगे की किसी और त्यौहार पर रात भर ऐसी चहल पहल नहीं होती ! और चहल-पहल भी ऐसी की हर जगह बीवी मेहँदी की लाइन में लगी दिखाई देंगी और पति बच्चों को सँभालने में !

अचम्भा तो तब होता है जब करवाचौथ के दिन सारी खलनायिकाएं ! मेरा मतलब बीवियां साथ मिलके पूजा करती हैं ! ऐसा लगता है इनसे सीधा, शालीन, सभ्य कोई हो ही नहीं सकता ! हां, किन्तु एक बात तारीफे काबिल है – सारा दिन भूखे रहना ! भेई पानी भी नहीं पीतीं ! फिर सोचता हूँ ! पुरे साल रानी बनकर रहने के एवज में ये कोन सा बड़ा काम है !

हद तो दो-तीन दिन पहले शुरू हो जाती है ! जरा सी बहस हुई नहीं ताना शुरू – फालतू बोलोगे तो बताये देती हूँ व्रत ना रखूंगी ! बेचारा पति – मरे क्या ना करे ! चुपचाप काम पे लग जाता है ! भाई – जरा सा चुप रहके यदि जिंदगी बचती है तो चुप रहने में ही भलाई है !

हां ! यदि बीवी नयी नयी है तो खतरा बहुत ज्यादा होता है ! महारानी जी से कभी कभी भूखा रहा नहीं जाता ! या तो बीच में ही बेहोश या भूख से हाल खराब होने पर कुछ खा ही लिया जाता है ! अब तो पति की हालत खराब ! पता नहीं कितने दिन जिंदा रह पाऊंगा ? यही सोच सोचकर बेचारा पूरा एक हफ्ता बीमार ! किसी तरह ठीक होने पर तसल्ली होती है फिर समझाने और मनाने का दौर शुरू ! माँ भी समझाती है – देख बेटी ! यदि सारी उम्र मौज करना चाहती हो ! पति की छाती पे मूंग दलना चाहती हो अपना राज कायम रखना चाहती हो तो पति की सलामती जरुरी है, उसके लिए व्रत तो रखना ही होगा ! हमने भी झेला है आखिर इतने साल !

मगर आज तक एक बात समझ नहीं आई ? उपरवाले ने ये बंदिश, समझौता, कमिटमेंट सिर्फ हिन्दुस्तानियों के लिए ही क्यों रखा ? विदेशियों के लिए क्यों नहीं ? क्या वहां की बीवियों को पति की लम्बी उम्र नहीं चाहिए ?

खैर, जो भी हो ! अपनी किस्मत तो बहुत बढ़िया रही है ! एकदम झकास ! बीवी इतनी सुशील, और सीधी है बिलकुल गाय के माफिक ! ना ना ना ! किसी ग़लतफ़हमी में ना रहना ! सुशील इसलिए के नाम उसका सुशीला है ! सीधी इसलिए की लम्बी बहुत है ! और गाये इसलिए की जब मै बैल (बहल) हूँ तो वो गाये तो हुई ही अपने आप ! पर है मरखनी गाये !

कुल मिला के यदि आपको जिन्दा रहना हो ! तो बीवी से पंगा लेने की जरा सी कोशिश भी आपके लिए घातक सिद्ध हो सकती है ! इसलिए चुपचाप सबकुछ सहते हुए अपने आपको लल्लू सिद्ध करते हुए जो वो कहे उसे सर आखों पर रखकर उसे पलकों पर बैठा कर रखो ! नहीं तो छोटी लड़ाई पर आपका हुक्का पानी बंद और बड़ी लड़ाई पे आपकी साँसे बंद !

इसलिए सब एक आवाज में बोलेंगे – पतियों की रानी, महारानी, घर की सिकंदर, देवी जी की ...................... जय !


“प्रवीन बहल खुशदिल”

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