Thursday 11 June 2015

....पार्किंग कूड़े की....

 लाहोल विला कुव्वत, कम्बख्त कोन सुबह सुबह गधे की तरह रंभा रिया हे ! अरे, बेगम सुनती हो ! अशफाक मियाँ ने अलसाते और खीजते हुए जोर से आवाज़ लगाई !

तभी उनकी बेगम सायेरा दनदनाती हुई आईं ! उनके हाथ में झाड़ू थी ! हां कहिये मियाँ - क्या बात हे ?

अरे ये वक़्त बेवक्त कोन हे जो जोर जोर से चिल्ला रिया हे – अशफाक मियाँ ने पूछा ?

बेगम बोलीं - अरे वो दो घर छोड़कर जो वर्मा जी नहीं रहते उनकी बेगम की पड़ोस वाले मास्टर जी की बीवी से कूड़े को लेकर लड़ाई हो रही हे !

अशफाक मियाँ बोले - कैसे जाहिल लोग हैं – कूड़े को लेकर लड़ाई ? कैसा मोहल्ला हैं ? जरा सी बात पर लड़ाई ! अनायास ही कुछ याद आते ही अशफाक मियाँ फिर बोले ! हाँ - कल भी अखबार में आया था जोरबाग में कूड़े के झगडे को लेकर मर्डर हो गया !

बेगम स्तब्ध ! या अल्लाह – मर्डर !

लेक्चर देते हुए अशफाक मियाँ बोले - छोटी सी बात पर लड़ाई ! अरे साफ़ सफाई रखो हमारी तरह ! एक कूड़े वाला नहीं लगा सकते ?

तभी अंदर से अशफाक मियाँ के आठ साल के साहिबजादे बिस्कुट खाते हुए आये और बचा हुआ आखिरी बिस्कुट खाते ही झट से बचा हुआ कागज दूसरी मंजिल की खिड़की से नीचे फैंक दिया ! अब अशफाक मियाँ कभी बेगम को देखें तो कभी खिड़की को ! डर ये की कहीं पडोसी न आ जाये लड़ने ! इसी पशोपेश में थे मियाँ, कि तभी घर की घंटी बज गयी ! अब तो अशफाक मियाँ का रंग फ़क ! ये क्या किया शहजादे ? अनायास ही डर और टेंशन की लकीरों के बादल छा गए !

तभी जोर की आवाज आई ! अरी सायेरा – जरा अपने शोहर से कह दे हमारे दरवाजे से गाड़ी हटा ले ! कितनी बार कहा - कि हमारे घर के बाहर गाडी खड़ी न किया करें ! अपने आप को सँभालते हुए अशफाक मियाँ ने जोर से कहा – हटाते हैं ! कल ऑफिस से लेट हो गए थे किसी ने हमारे घर के सामने अपनी गाड़ी खड़ी कर दी थी ! तो हमने आपके यहाँ अपनी गाड़ी लगा दी ! पलटकर जवाब आया – अरे कल को घर में कूड़ा फैंकने की जगह नहीं होगी तो क्या हमारे यहाँ फेंकोगे ?

ये कैसा जवाब ? अशफाक मियाँ को गुस्सा तो बहुत आया – पर मर्डर वाली बात याद आते ही उनकी हवाइयां उड़ने लगीं ! वैसे भी वो अभी मरना नहीं चाहते थे ? उम्र ही क्या हैं - पैंतीस ? और फिर कूड़े के लिए कोन और क्यों मरे ?

इतवार के दिन भी चैन नहीं लेने देते ! किसी तरह गिरते पड़ते अशफाक मियाँ उठे और गाड़ी जैसे ही वहां से हटाई ! तूफ़ान मच गया ! अरे ये क्या – कोई गाडी के नीचे इतना सारा कूड़ा फैंक गया ! भाई साहिब – इसे हटाइए ! अभी के अभी इसे हटाइए ! वरना कहे देती हूँ ! अजी सुनते हो ! अरे ये आप क्या कर रही हैं ? भाई साहिब को क्यों कहती हैं हम हटाते हैं ! मरता क्या ना करता !

कभी पानी का गिलास ना उठाने वाले अशफाक मियाँ आज खुलेआम सड़क से कूड़ा उठा रहे थे ! वाह रि किस्मत ! ये दिन देखना रह गया था !

गुस्से में दनदनाते हुए अशफाक मियाँ बेगम से अभी आने की बात कहकर गाड़ी लेकर चल दिए ! मुंह से बढ़बढाये जा रहे थे ! आज – आज बदल ही डालूँगा ये घर ! किसी अच्छे मोहल्ले में जायेंगे ! यही सोचते सोचते जाने कब उनके दोस्त सलीम का घर आ गया ! सलीम का दबदबा बहुत था उसके इलाके में ! फ़ोन से उसे इत्तेला दी कि तुम्हारे घर के नीचे खड़े हैं !

अरे ! अशफाक मियाँ ! इतनी सुबह ? सब खैरियत तो हैं?

बताता हूँ ! बताता हूँ ! पहले अंदर तो ले चलो ! अशफाक मियाँ की आवाज़ में गुस्सा और चिडचिडापन दोनों था !

हाँ ! अब बताओ ! क्या बताएं सलीम मियाँ– और अशफाक ने सारी आपबीती सलीम को बता दी !

हम्म ! तो ये माजरा हैं ! इतने में चाय भी आ गयी ! लो चाय पियो !

अरे नहीं हमें चाय नहीं ! फ्लैट चाहिए !

हाँ हाँ – फ्लैट भी मिलेगा ! पहले चाय तो लो ! सलीम मियाँ ने कहा !

अशफाक मियाँ ने जल्दी से चाये का कप उठाया ! इतनी तेजी से चाये पी रहे थे की जैसे अभी पाँच मिनट में फ्लैट खरीद डालेंगे ! तभी फ्लैट की बेल बजी ! किसी ने दरवाजा खोला और एक हट्टे कट्टे व्यक्ति ने अंदर कदम रखते ही सख्त लहजे में बोलना शुरू कर दिया - अरे सलीम मियाँ आपसे कितनी बार कहा हैं पार्किंग से गाड़ी निकलने की जगह तो छोड़ दिया करो ! आपके यहाँ कोई आया हैं और गाडी आढी टेढ़ी कड़ी कर दी ! कहते हुए वो गुस्से से बाहर चला गया !

अशफाक मियाँ हैरानी भरी नज़रों से सलीम की और ताक रहे थे ! सलीम के चेहरे पर अजीब सी मुस्कराहट थी ! अब हमें सारा माजरा समझ आ गया ! जब सलीम जैसे दबंग इंसान भी इस समस्या से दो-चार हो रहे हैं तो अपनी क्या बिसात ! तभी सलीम मियाँ अशफाक की गाड़ी की चाबी टेबल से उठाते हुए खड़े हुए और बोले ! चलो चलते हैं मियाँ – तुम्हें फ्लैट दिखाने ! पर ऐसा फ्लैट – जहाँ पार्किंग, नाली और कूड़े की समस्या ना हो केवल एक जगह ही मिल सकता हैं अशफाक मियाँ ! अशफाक मियाँ ने उत्सुकतापूर्वक पूछा – कहाँ ?

चाँद पर ! सलीम ने कहा !

जोरदार ठहाकों के साथ सारा वातावरण गूँज गया !

बस इतनी सी थी ये कहानी – जिसमें हर गली, कूंचे में आपको कई अशफाक मियाँ मिल जायेंगे ! अब ये आपके उपर हैं की आप अपने आपको एडजस्ट करके समाज को सुधारने की कोशिश करेंगे या चाँद पर जायेंगे घर ढूँढने ?



“प्रवीन बहल खुशदिल”

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