Wednesday 16 September 2015

--इंसान या नरपिशाच—

मानो कल ही की बात हो । समाज के लोग आपस में विचार विमर्श करके किसी भी विवाद को थाने पहुँचने से पहले ही आपस में निपटा लेते थे । मन में एक दूसरे के प्रति सम्मान होता था । दूसरे के दर्द को अपना समझा जाता था । लोगों में सहनशीलता थी ।


आज ! आज ना वो समाज है । ना दर्द समझने के लिए वो दिल । अपनों को अपना नहीं समझा जाता आज । फिर दूसरों की मदद करना तो बेवकूफी कहा जाता है । ना ही लोगों में सहनशीलता दिखती है ।

दो-दो रूपए के लिए खून कर दिया जाता है । जरा सी गाड़ी छु जाए बस । एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं । सच में घोर कलयुग आ ही गया । लड़ने वाले ये नहीं सोचते की सामने वाले के या स्वयं उसके घर में कोई उसका बेसब्री से इंतज़ार करता होगा । उस समय तो बस उसके दिमाग में क्रोध सातवें आसमान पर होता है । इंसान को कुछ नहीं सूझता ।

किन्तु एक बात समझ नहीं आती । सबकुछ वही - पृथ्वी, देश, शहर, सड़कें, रिश्ते, दिमाग । पैसा पहले भी होता था लोगों के पास - पर दिखावा नहीं । फिर इंसानियत में इतना बड़ा बदलाव क्यों ?

क्या यह मौसम का असर है - ग्लोबल वार्मिंग ।
या यह भागती दौड़ती फास्ट लाइफ का असर है ।
या केवल पैसे की जरुरत अथवा लालच ।
या केवल और केवल रौब दिखाने का तरीका ।
या जनसँख्या की बेतहाशा वृद्धि दर ।

माना की इंसान को तरक्की करनी चाहिए । आगे बढ़ना चाहिए किन्तु - इंसान की जान की कीमत पर ? कदापि नहीं । ऐसे तो इंसान में एक दूसरे के खून की प्यास बढ़ती जायेगी और मानव और जानवर में कोई अंतर ना रह जायेगा । वैसे भी आज इंसान क़त्ल करने के वीभत्स तरीकों में जानवर ही प्रतीत होता है । जिस प्रकार गला रेतकर वा शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके क़त्ल कर दिए जाते हैं वह किसी जानवर का शिकार का तरीका ही होता है ना की किसी इंसान का ।

हमें सहनशीलता कायम रखने के लिए कदम उठाने की जरुरत है । यदि आज इस मुद्दे पर कोई कदम ना उठाया गया तो भविष्य में हमारा समाज नरपिशाचों का समूह बनकर रह जायेगा ।

प्रवीन बहल "खुशदिल"'' 


Tuesday 23 June 2015

...टीवी - रिश्तों का वायरस...

टीवी, एक ऐसी बीमारी जिसका इलाज़ ना तो कोई डॉक्टर कर सका ना कोई नीम-हकीम । कभी शहरों के राहीसों की शान हुआ करता था टीवी । पुरे मोहल्ले के लोग चल पड़ते थे टीवी देखने एक ही घर में । और जिस घर में वो टीवी होता था वो भी किसी साहूकार से कम नहीं था पूरी धौंस चलती थी बन्दे की ।

दूरदर्शन, एक ऐसा चैनल जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आया है । दूरदर्शन का वो घूमता लोगो कौन भूल पाया है भला। उसका अलग ही संगीत आज भी कानों में गूंजता है।

वो चित्रहार देखने के लिए सबका उत्सुकतापूर्वक इंतज़ार करना कौन भूल पायेगा भला ? वो रविवार को रामायण का एपिसोड जब पूरी गलियां मोहल्ले व शहर के शहर सुनसान हो जाया करते थे । नव वर्ष से पूर्व रात्रि पर मूंगफलियां, ग़ज़्ज़क, रेवड़ी लेकर बेसब्री से मनोरंजक कार्यक्रम का इंतज़ार होता था ।

कई पुराने ऐड भी आज तक दिमाग में यादों का एक बॉक्स लिए हुए हैं । कपिल देव का - पामोलिव दा जवाब नहीं हो या 555 कपडे धोने के साबुन की ऐड। एस.कुमार. शूटिंग-शर्टिंग शान बढ़ाएं भी कई बार दिखने वाला ऐड था । और न जाने कितने ऐड व कार्यक्रम आज भी जहन में ज्यों के त्यों हैं ।

धीरे-धीरे टीवी में क्रांति आई और आज सैंकड़ों चैनल की चॉइस आपके सामने है। किसी भी चैनल पर आपका कार्यक्रम पलक झपकते ही आपके सामने । आप रात को 2 बजे या किसी भी समय फ़िल्म, धारावाहिक, गाने, भजन, खेल, सोशल, क्विज़ या डिस्कवरी चैनल्स देख सकते हो । इससे बच्चों के ज्ञान में भी वृद्धि होती है ।

किन्तु आज यह टीवी कुछ बुराईयाँ भी अपने साथ लेके सामने आया है जैसे - आँखों की कमजोरी, सुनने की क्षमता में कमी, फिल्मों में बढ़ती अश्लीलता इत्यादि । किन्तु एक समस्या बहुत बड़े रूप में सामने आ रही है । और वह है परिवार के सदस्यों में चैनल्स के चयन को लेकर होने वाले विवाद ।

बुजुर्ग माँ-बाप कहते हैं - भजन लगाओ ।
बेटा कहता है - क्रिकेट मैच देखना है।
बीवी को चाहिए - धारावाहिक ।
बच्चे तो बस - कार्टून के दीवाने हैं ।

सबके सब पागल हैं टीवी के लिए । कभी कभी गुस्से में रिमोट तोडना, टीवी ख़राब करना टीवी बंद कर देना वा हाथापाई तो अब आम बात हो गयी बल्कि अब तो कभी कभी गुस्से में मर्डर भी हो जाते हैं । टीवी ना हो गया - बीवी हो गयी । पूरा घर उस पर डिपेंड ।

क्रिकेट मैच की ऐसी दीवानगी । मानो बाउजी खुद ही सचिन तेंदुलकर हैं या बनेंगे । बच्चे भी खुद को डोरेमोन, भीम और किसी चिंछैन से कम नहीं समझते । और महिलायें । उनकी तो हद ही पार हो जाती है । ऐसे घुस जाती हैं टीवी में धारावाहिक देखने के लिए जैसे उन्हीं के ऊपर सब बीत रहा हो जैसे उन्ही के घर की कहानी हो । बड़ी बड़ी साजिशें, मर्डर, रोमांस वा हर मसाला होता है इन सेरिअल्स में ।

अरे कोई समझाओ इन्हें की मैडम ये सीरियल है हकीकत नहीं। इनसे कोई अच्छी बात सीखे ना सीखें, पर साजिशें व चालाकियां जरूर सीखीं जा सकती हैं जो घर परिवार तोड़ने के लिए काफी है।

कुल मिलाके इसे केवल मनोरंजन तक ही रहने दें घर की हकीकत में शामिल ना करें वरना तलाक होने में समय ना लगेगा और आपके लिए रह जायेगी - "डोली अरमानों की" ।


"प्रवीन बहल खुशदिल"


Saturday 20 June 2015

....सबसे अमीर आदमी....

शहर के छोटे से बाज़ार की इक छोटी सी कपडे सिलने की दुकान ! मुंह से पान की टपकती लार और सर पर नेताओं जैसी टोपी ! यही तो थी दुकान के मालिक की पहचान ! जुम्मन मियाँ ! किसी फ़िल्मी कैरक्टर की तरह था उनका नाम और अंदाज़ भी !

काम चाहे हो ना हो पर भीड़ पूरी रहती थी जुम्मन मियाँ की दुकान पर !  सब के सब खिचाई में लगे रहते थे जुम्मन मियाँ की ! और जुम्मन मियाँ कुड़ते हुए मन ही मन सोचा करते – दिखा दूंगा बेटा एक दिन एक एक को, कि हम भी क्या चीज़ हैं !

आज कुछ ज्यादा ही चहक रहे थे जुम्मन मियाँ ! और चेह्कते भी क्यों ना आखिर शादी के लिए दुल्हे की शेरवानी सिलने का आर्डर जो मिला था पुरे दस हज़ार रूपए का ! और उस पर सोने पे सुहागा ये की कोठी नंबर १३ के जुनेजा साहिब के घर से आर्डर आया था !

कोठी नंबर १३. जी हाँ यही पहचान थी उस घर की पुरे शहर में ! काफी रुतबा था जुनेजा साहिब का ! टॉप के बिजनेसमैन – करोडपति !  जिस कोठी के अंदर लोग झाँकने में भी अपनी शान समझते थे आज उसी कोठी से जुम्मन मियाँ को आर्डर मिला था भाई ! फिर आना जाना और पुरे शहर में ढिंढोरा पिटना तो लाज़मी था ! बस ! जो भी निकला दुकान के आगे से उसी को पकड़कर ये राम कहानी सुनानी शुरू !

तभी बिखरे बिखरे बाल, चश्मा लगाये वा लम्बा सा झोला लटकाए एक अधेड़ उम्र का शख्स वहां से निकल रहा था ! जुम्मन मियाँ ने सोचा – बाकी सब तो अच्छे ठीक ठाक हैसियत वाले लोग हैं हमारे संपर्क में कोई हमारी सुनता नहीं ! ये मियाँ तो फ़कीर की तरह दिखते हैं ! यही मोका हैं – अपना रुतबा दिखाने का ! और लगभग जबरदस्ती वाले अंदाज़ में रोकते हुए जुम्मन मियाँ बोल पड़े ! अरे ! रवि बाबु ! कैसे हो ?

शांत वा अपने आप मे खोये उस व्यक्ति की शख्सियत और चेहरे का तेज अनायास ही उसकी और आकर्षित कर रहा था ! जी हाँ – रवि कपूर नाम था उस शख्स का ! शायद आज तक उन्हें बात करते नहीं देखा गया था किसी से भी ! अभी सिर्फ चार या पाँच महीने पहले ही आये थे कहीं से ! पच्चीस गज के छोटे से मकान में रहते हैं रवि बाबू !

जुम्मन मियाँ शायद आज ही उन्हें पूरी तरह अपने अंटे में ले लेना चाहते थे ? पूरा अपनापन दिखाना चाह रहे थे !  एक स्पेशल चाय ला भेई छोटू – पहली बार आये हैं - रवि बाबु हमारी दुकान पर ! उसके बाद वही राम कहानी शुरू ! जितनी ख़ुशी उन्हें शेरवानी सिलने के आर्डर की थी उससे कही ज्यादा शादी के न्योते और उस शादी कार्ड की थी जो कोठी नंबर १३ से आया था ! कार्ड भी अपने आप में रहीसी की बानगी पेश कर रहा था !
रवि बाबु को पूरी राम कहानी सुनाने के बाद जुम्मन मियाँ उनका हाथ पकड़कर बोले ! आपको भी चलना होगा हमारे साथ शादी में !

अवाक रह गए रवि बाबु यह बात सुनकर जुम्मन मियाँ के मुहं से ! शायद जरा भी अंदाजा नहीं था रवि बाबु को, कि जुम्मन मियाँ उन्हें ऐसे भी आमंत्रित कर सकते हैं अपने साथ चलने को ! रवि बाबु ने लाख मना किया पर जुम्मन मियाँ तो जैसे आज उनपर अपना सारा प्यार न्योछावर करने पर आमादा थे !

उस रात दस तो दुकान बंद करने में ही लग गए थे जुम्मन मियाँ को ! इसलिए लेट तो पहले ही हो चुके थे ! पर माशाल्लाह ! क्या शादी थी ! बड़े बड़े कलाकार गाते हुए ! नाचते हुए ! लोक संगीत के वाध्य यन्त्र बजाते कई सो कलाकार ! पाँचसों तरीके का तो खाना था ! उफ्फ !

कम से कम बीस करोड़ तो लगाया होगा ? जुम्मन मियाँ ने ख़ामोशी तोडते हुए कहा !

हाँ ! लगभग ! रवि बाबु ने धीरे से कहा !

जुम्मन मियाँ ने रोब से अपनी शान बघारते हुए कहा – देखा रवि बाबु कितनी और कैसे रहीस लोगों से जान पहचान हैं अपनी !

धीरे से हाँ में गर्दन हिलाते हुए मुस्कुरा दिए रवि बाबु !

लगभग साड़े ग्यारेह बज गए खाना खाते खाते ! कभी इतना लज़ीज़ खाना खाया हे रवि बाबु ! एक बार फिर शेखी बघारते हुए बोले जुम्मन मियाँ !

वापसी होने को ही थी की अचानक रवि बाबु ने सुना (शायद वो इसी की प्रतीक्षा में कान लगाये बैठे थे) की खाने वाला जुनेजा साहिब से कह रहा था – सर ! पाँच हज़ार लोगो का खाना बनवाया था और आये चार हज़ार भी नहीं !

जुनेजा साहिब रोब से बोले – कोई बात नहीं ! बचा हुआ खाना फैंक दो !

तभी बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़ते हुए रवि बाबु जुनेजा साहिब के पास जाकर बोले ! सर ! यदि इज़ाज़त हो तो एक निवेदन करना चाहूँगा ! जुनेजा साहिब ने उपर से नीचे तक रवि बाबु को निहारा ! बोलिए !

उधर जुम्मन मियाँ हैरान, परेशान और घबराये हुए सोच रहे थे ! अबे मरवा दिया ! क्या बोलना चाह रिया है ये – वो भी जुनेजा साहिब से ! बैचैनी सातवें आसमान पर थी !

जी आप ये खाना फैंकिए मत ! किसी भूखे के काम आ जायेगा ! रवि बाबु आग्रह करते हुए बोले !
पर इस समय इतने लोग कहाँ .....

जुनेजा साहिब की बात बीच में ही काटते हुए रवि बाबु बोले ! और हाँ जुनेजा साहिब – एक सलाह देना चाहूँगा की जितना पैसा आपने इस शादी में लगाया हैं उसके आधे में भी आप यह सब कर सकते थे और बाकी गरीबों और जरुरतमंदों के लिए लगा देते तो आपको दुआएं मिलती !

सब अवाक् ! जुम्मन मियाँ के चेहरे पर तो हवाइयां उड़ने लगीं !

व्हाट डू यू मीन ? आप होते कोन हैं मुझसे ऐसे बोलने वाले ? किसके साथ आये हो ? कोन हो ? कोन हो आप ? जुनेजा साहिब की आवाज में कड़कपन, घमंड व गुस्सा था ! वो जोर जोर से चिल्ला रहे थे !

अबे मरवा दिया ! अबे लुट गया ! अबे क्यूँ ली आया इसे साथ में ! जुम्मन मियाँ धीरे धीरे बुदबुदाये जा रहे थे !

अचानक सूट बूट में हाथ में कोल्ड ड्रिंक का गिलास लिए एक व्यक्ति आगे आकर बोला ! अरे ये तो रवि जी हैं – रवि कपूर !

बहुत बड़े इंडस्ट्रीलिस्ट थे ये ! अरबोपति !

सभी अवाक !

उस व्यक्ति ने आगे बोलना जारी रखा ! जी हाँ – इनका नाम तो पूरी दुनिया में है की किस तरह इनके दोनों बच्चे एक भयानक रोड एक्सीडेंट का शिकार होकर चल बसे और इन्होने अपनी अरबों की दौलत गरीबों को समर्पित कर दी व अपना आगे का पूरा जीवन अपनी NGO बनाकर लोगों की सेवा में लगा दिया ! एक ही सांस में उस व्यक्ति ने अपनी बात कह डाली !

कुछ क्षणों के लिए पूरी तरह सन्नाटा छा गया !

तभी जुनेजा साहिब आगे बड़े और रवि जी से माफ़ी मांगते हुए बोले – सॉरी ! रियली सॉरी रवि जी ! मुझे आपसे ऐसे वर्ताव नहीं करना चाहिए था !

नहीं नहीं कोई बात नहीं ! रवि बाबु बोले !

रवि जी - में आपसे आज ये वादा करता हूँ की अपने बाकि दोनों बच्चों की शादी सादगी से करूँगा और जरुरत मंदों की मदद भी करता रहूँगा ! जोरदार तालियों के साथ वातावरण गूँज उठा !

उधर जुम्मन मियाँ की आँखों में आसुओं का सैलाब उमड़ आया ! अपने दोनों हाथों से अपना मुंह ढककर आगे बड़ते हुए जुम्मन मियाँ रवि बाबु से लिपट गए !

रवि बाबु उन्हें चुप करने की कोशिश कर रहे थे !

मुझे ! मुझे माफ़ कर दो रवि बाबू मेनें आपको बेकार और निर्धन व्यक्ति समझा ! अरे आप तो दुनिया के सबसे अमीर इंसान निकले - दिल के अमीर ! लगातार रोये जा रहे थे जुम्मन मियाँ !

जुम्मन मियाँ की पीठ पर प्यार से हाथ फेरने लगे रवि बाबू ! तब तक रवि बाबु की NGO  से बच्चे भी खाना खाने आ चुके थे ! जिनके लिए आज खाना नहीं बनाया गया था क्योंकि रवि बाबु अमीरों की आदतों से भली भाँती परिचित थे ! 

एक कोने में जाकर बैठने के बाद रवि बाबु भरी आँखों से आकाश की और देखते हुए सोचने लगे – देखा बच्चों ! एक और जीत हासिल कर ली मेनें !

लेकिन ये लड़ाई तब तक जारी रहेगी !

जब तक हैं जान ! जब तक हैं जान ! जब तक हैं जान !


“प्रवीन बहल खुशदिल”



Friday 19 June 2015

गंजापन – दुनियाँ का सबसे बड़ा दुःख

दोस्तों ! दुनियां में बहुत दुःख है ! शायद ही कोई इंसान ऐसा हो इस ब्रह्माण्ड में जो दुखी न हो ! कोई बीवी से दुखी तो कोई पति से कोई बेटे से तो कोई बाप से कोई पैसे ना होने पर दुखी तो कोई बीमारी से ! किन्तु एक दुःख ऐसा है जो सर्वव्यापी होने के साथ साथ ऐसा है की शायद आज तक उस दुःख से बड़ा दुःख कोई बना ही नहीं ! जी हां ! वो दुःख है – गंजापन !

वैसे तो चाहे बच्चा हो या जवान या फिर कोई बुजुर्ग ही क्यों ना हों ! सभी चाहते हैं की उनके घने वा भरपूर बाल हों ! यदि गलती से बाल टूटने शुरू हो जाएँ तो बस ऐसी टेंशन पैदा हो जाती है जैसी बोर्ड के एग्जाम के समय भी नहीं हुई थी ! भाई साहिब ! इस टेंशन को मै केवल उस टेंशन के बराबर समझता हूँ जो शादी के समय होती है !

यदि बाल शादी होने के बाद उड़ने शुरू होते हैं तो मन के एक कोने में फिर भी एक तसल्ली रहती है की चल यार अब क्या फ़र्क पड़ता है ? अब तो शादी हो चुकी है ! उसमे भी तर्क सिर्फ यह है की - अंगूर खट्टे हैं ! क्योंकि बाल टूटने तो रूकने से रहे ! चलो दिल को ही समझा लो ! लेकिन यदि शादी से पहले बाल उड़ने शुरू हो गए तो समझो ! गयी भैंसिया पानी में ! भाई ! रातों की नींद हराम हो जाती है ! दुनिया का कोई तरीका इंसान नहीं छोड़ता की किसी तरह बाल टूटने से रूक जाएँ ! हर प्रकार का तेल लगाया जाता है फिर चाहे किसी के कहने पर सात  समुंदर पार से ही क्यों न लाना पड़े ! बाल आयें या ना आयें किन्तु तेल कपनियों के वारे न्यारे पक्के हैं ! कई नीम हकीम मिल जायेंगे आपको तेल बेचते हुए जिनका खुद का गुलशन उजड़ा हुआ होता है यानि झालर या टकला निकला होता है ! किन्तु फिर भी लोग अपने सर की हरियाली पाने के लिए हर हथकंडा अपनाने को तैयार रहते हैं !

यदि तेल से भी कोई फिर्क नहीं पड़ता तो दूसरों के कहने में आकर घरेलु उपचार किये जाते हैं ! रीठे, आवला, शिकाकाई और ना जाने क्या क्या ! जिन चीजों के नाम कभी सुने ही नहीं थे वह भी इस्तेमाल में लायी जाती हैं ! वो बात अलग है की बाल टूटने बंद होने की जगह और ज्यादा झड़ने लग जाएँ !

अच्छा, गंजो की भी कई किस्में होती हैं !

कई लोग बीच में से थोड़े से गंजे हो जाते हैं ! इस प्रकार के गंजे सबसे अधिक मात्रा में पाए जाते हैं !

कई लोग बीच में पूरे सफाचट हो जाते हैं  साइड से थोड़े-थोड़े बाल रह जाते हैं ! इन्हें झालर वाले गंजे भी कहा जाता है ! ये बहुत ही कम पाए जाते हैं !

कई लोगों के बिलकुल बाल नहीं होते ! इन्हें शेट्टी या डैनी स्टाइल कहा जाता है ! कई लोग इन्हें गंजे की जगह टकला नाम से बुलाते हैं !

तीनों ही प्रकार के गंजों में दो बात कोमन है एक यह की टोपी का अधिक इस्तेमाल करते हैं ! दूसरा यह की एक जुमला सब के लिए प्रसिद्ध है की बाल उड़ने का मतलब – पैसा आने वाला है वो भी मोटा पैसा ! वो बात अलग है की जेब में चाहे फूटी कोड़ी हो ना हो सेठ तो बन ही गए – बातों के सेठ !

तीनों की अपनी अलग अलग परेशानियाँ भी हैं ! जहाँ झालर वाले बाबु समझ नहीं पाते की कटिंग कब कराएँ ? वहीँ टकले बाबु को नहाते समय समझ ही नहीं आता की साबुन कहाँ तक लगाना है ? और बीच से गंजे बाबू के सर के ठीक बीच में कभी साबुन जम जाता है तो कभी तेल ! कंघी करनी अलग मुश्किल !

मै तो कहता हूँ सभी देश के प्रधानमंत्रियों को मिल बैठकर इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए ! सभी वैज्ञानिकों को केवल और केवल इसी काम पर लगा देना चाहिए ! क्योंकि जब हम अपने सर को हराभरा नहीं रख सकते तो प्रकृति को क्या हराभरा रखेंगे ! यदि जल्द ही इसका समाधान ना निकाला गया तो हर तरफ सिर्फ टकले ही टकले दिखेंगे ! और भविष्य के लोगों को पता ही नहीं चल पायेगा की उनके पूर्वज सर पर खेती किया करते थे !

आप में से कई लोग इसी समस्या से जूझ रहे होंगे ! कुछ सीरियस भी होंगे ! तो ऐसे सभी भाई साहिब से में वादा करता हूँ की उनके लिए प्रार्थना करूँगा की उनका गुलशन फिर से हरा भरा हो जाये !

ऐसा नहीं है की टकला होने का सिर्फ नुक्सान ही होता है कुछ फायदे भी हैं इसके ! कंघी की जरुरत नहीं ! कटिंग का खर्चा नहीं !  ओर तो ओर यदि बेगम से लड़ाई हो जाये तो बाल पकड़कर खींचने का कोई चांस ही नहीं !

और एक सबसे बड़ा लाभ यह की हर टकले की बीवी यही कहती मिलेगी की – इक चाँद आसमां पे, इक मेरे पास !

 

प्रवीन बहल खुशदिल

 

Wednesday 17 June 2015

करवाचौथ – दिन पत्नियों का ! मौज पतियों की !

करवाचौथ ! पति के लिए अमृत समान एक ऐसा दिन जिस दिन बीवी अपना हथियार यानि बेलन नहीं उठा सकती ! उस दिन का बीवी के साथ साथ पति भी बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं ! बीवी देवी का रूप हो तो नार्मल दिन है ही ! उस दिन की अहमियत तो उनके लिए स्वर्ग में बिताये एक दिन की तरेह है जिनकी बीवी खतरनाक, खलनायिका, खूंखार, उग्र, चुड़ैल, चाण्डालिनी का रूप लिए रखती हैं ! किन्तु उस दिन सब शांत, नम्र, सावित्री, देवी का रूप लिए होती हैं ! उस दिन आप राजा होते हो और वो आपकी दासी !

करवाचौथ के दिन पत्नी जी भरकर दुआ करती है ! हे प्रभु ! इनकी दीर्घायु की कामना करती हूँ ! पुरे वर्ष ये इसी तरेह मेरे ताने सुनते रहें वा बेलन खाते रहें ! इस गायें रुपी पति को कम से कम मेरे जितनी उम्र तो दे ही दे ! ताकि इसी तरेह कमा कमा कर ये गाय रुपी पति मुझे खिलाता पिलाता रहे और मुझे शोपिंग के पैसे मिलते रहें ! वैसे भी मिलते क्या रहें ? कमाता रहे तो पैसे तो अपने आप ले ही लुंगी ! पर आज नहीं ! आज माफ़ किया !

पति भी आज तक हैरान परेशान हैं की आज के दिन ऐसा हुआ क्या था जो हमें इतनी छूट मिल जाति है ! और उस पर उस दिन व्यंजन अलग से खाने को दे दिए जाते हैं ! पति भी खुश ! चल इतने पैसे खर्च के यदि एक दिन ताने और मार की जगह थोडा दुलार मिल रहा है तो कोन सा महंगा है ? थोडा सजने सवारने और खाने पीने में लगता ही क्या है ?

रूप श्रंघार ऐसा की खुद पति भी पहचान नहीं पाते की बीवी अपनी है या किसी और की ! चूड़ी, बिंदी, सिन्दूर, नयी महंगी साडी, सबकुछ ब्रांडेड व नया ! रात रात भर बैठकर हाथों में मेहँदी लगानी भी जरुरी है ! एक रात पहले का नज़ारा आप देखेंगे तो पायेंगे की किसी और त्यौहार पर रात भर ऐसी चहल पहल नहीं होती ! और चहल-पहल भी ऐसी की हर जगह बीवी मेहँदी की लाइन में लगी दिखाई देंगी और पति बच्चों को सँभालने में !

अचम्भा तो तब होता है जब करवाचौथ के दिन सारी खलनायिकाएं ! मेरा मतलब बीवियां साथ मिलके पूजा करती हैं ! ऐसा लगता है इनसे सीधा, शालीन, सभ्य कोई हो ही नहीं सकता ! हां, किन्तु एक बात तारीफे काबिल है – सारा दिन भूखे रहना ! भेई पानी भी नहीं पीतीं ! फिर सोचता हूँ ! पुरे साल रानी बनकर रहने के एवज में ये कोन सा बड़ा काम है !

हद तो दो-तीन दिन पहले शुरू हो जाती है ! जरा सी बहस हुई नहीं ताना शुरू – फालतू बोलोगे तो बताये देती हूँ व्रत ना रखूंगी ! बेचारा पति – मरे क्या ना करे ! चुपचाप काम पे लग जाता है ! भाई – जरा सा चुप रहके यदि जिंदगी बचती है तो चुप रहने में ही भलाई है !

हां ! यदि बीवी नयी नयी है तो खतरा बहुत ज्यादा होता है ! महारानी जी से कभी कभी भूखा रहा नहीं जाता ! या तो बीच में ही बेहोश या भूख से हाल खराब होने पर कुछ खा ही लिया जाता है ! अब तो पति की हालत खराब ! पता नहीं कितने दिन जिंदा रह पाऊंगा ? यही सोच सोचकर बेचारा पूरा एक हफ्ता बीमार ! किसी तरह ठीक होने पर तसल्ली होती है फिर समझाने और मनाने का दौर शुरू ! माँ भी समझाती है – देख बेटी ! यदि सारी उम्र मौज करना चाहती हो ! पति की छाती पे मूंग दलना चाहती हो अपना राज कायम रखना चाहती हो तो पति की सलामती जरुरी है, उसके लिए व्रत तो रखना ही होगा ! हमने भी झेला है आखिर इतने साल !

मगर आज तक एक बात समझ नहीं आई ? उपरवाले ने ये बंदिश, समझौता, कमिटमेंट सिर्फ हिन्दुस्तानियों के लिए ही क्यों रखा ? विदेशियों के लिए क्यों नहीं ? क्या वहां की बीवियों को पति की लम्बी उम्र नहीं चाहिए ?

खैर, जो भी हो ! अपनी किस्मत तो बहुत बढ़िया रही है ! एकदम झकास ! बीवी इतनी सुशील, और सीधी है बिलकुल गाय के माफिक ! ना ना ना ! किसी ग़लतफ़हमी में ना रहना ! सुशील इसलिए के नाम उसका सुशीला है ! सीधी इसलिए की लम्बी बहुत है ! और गाये इसलिए की जब मै बैल (बहल) हूँ तो वो गाये तो हुई ही अपने आप ! पर है मरखनी गाये !

कुल मिला के यदि आपको जिन्दा रहना हो ! तो बीवी से पंगा लेने की जरा सी कोशिश भी आपके लिए घातक सिद्ध हो सकती है ! इसलिए चुपचाप सबकुछ सहते हुए अपने आपको लल्लू सिद्ध करते हुए जो वो कहे उसे सर आखों पर रखकर उसे पलकों पर बैठा कर रखो ! नहीं तो छोटी लड़ाई पर आपका हुक्का पानी बंद और बड़ी लड़ाई पे आपकी साँसे बंद !

इसलिए सब एक आवाज में बोलेंगे – पतियों की रानी, महारानी, घर की सिकंदर, देवी जी की ...................... जय !


“प्रवीन बहल खुशदिल”

गरीबों की शिक्षा पर भ्रष्टाचार का डाका - स्कूलों में EWS कैटेगिरी में 3 से 10 लाख रिश्वत (NBT)

एक समय था जब अच्छी शिक्षा के साथ साथ हर विद्या में निपुण होने के लिए बच्चे को गुरुकुल भेजा जाता था ! जहाँ गुरु और शिष्य का एक अलग ही रिश्ता था ! जहाँ गुरु अपने प्रिय शिष्य के लिए रात दिन एक कर देता था तो वहीँ शिष्य अपने गुरु के लिए अपनी जान दांव पर लगाने में जरा सा भी संकोच नहीं करता था ! एकलव्य की कहानी इसका सार्थक उदाहरण हे !

बाद में गुरुकुल का रूप बदलकर पाठशाला हो गया ! जहाँ बच्चों के साथ जाति, धर्म का भेदभाव किया जाने लगा ! शिक्षा का स्तर गिरता चला गया ! किन्तु ऐसे वातावरण में भी कई विद्यार्थी अपनी बुद्धि व परिश्रम के बल पे आगे बड़े और ख्याति प्राप्त की ! महात्मा गाँधी, विवेकानंद जी, रविंदर नाथ टैगोर व भीमराव आंबेडकर को भला कोन भूल सकता हैं जिन्होंने देश में शिक्षा का अभाव होने के बावजूद विदेशों में शिक्षा प्राप्त करके नए कीर्तिमान स्थापित किये !

आज शिक्षा का स्तर कहाँ है ?

पाठशालाओं ने आज भव्य स्कूलों का रूप ले लिया हैं यदि कुछ संगठनों के द्वारा चलाये जा रहे स्कूलों को छोड़ दिया जाये तो सुविधाओं के नाम पर खुलेआम लूटा जाता हैं! नाम अलग-अलग हैं - एडमिशन चार्ज, डोनेशन, डेवलपमेंट चार्ज ! उसके अलावा किताबें वा यूनिफार्म स्कूल से लेना अनिवार्य कर दिया जाता है जिनका मूल्य आसमान को छूता है ! उसमें स्कूलों का कमीशन शामिल होता है ! चार्ज इतने ठोक दिए जाते हैं और सुविधाएँ नदारद !

ऐसा नहीं है की सरकार की तरफ से कोई स्कीम्स नहीं हैं ! लगभग 25 प्रतिशत सीट्स गरीब वा जातिगत आधार पर सुरक्षित रखी जाति हैं ! जिसमें बच्चों को बिलकुल मुफ्त शिक्षा का प्रावधान है ! किन्तु वहां भी रिश्वत का बोलबाला है ! पैसा फैंको तमाशा देखो ! आज की नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार ई.डब्लू.एस. में एडमिशन के लिए 3 लाख से 10 लाख तक रिश्वत दी जाती है! इस सम्बन्ध में 4 लोगों को हिरासत में भी लिया गया है ! किन्तु क्या इतना भर काफी है ? यहाँ तो लगभग हर स्कूल में भ्रष्टाचारियों का वास है ! ये सब गरीबों का हक़ मारना व शिक्षा से वंचित रखने का एक बड़ा रैकेट चलाया जा रहा है ! केवल एक आय प्रमाण पत्र देना होता है वो भी थोड़ी सी रिश्वत देके बनवा लिया जाता है !

मै दावे के साथ कह सकता हूँ की यदि उस स्कीम के अंतर्गत यदि सभी स्कूल्स की तहकीकात की जाय तो लगभग 80% लोग ऐसे निकलेंगे जिनकी आय उस सीमा से अधिक होगी और लगभग 40% तो ऐसे होंगे जिनकी आय एक लाख रूपए महीने से अधिक होगी ! लग्सरी गाड़ियों में घुमते होंगे ! बड़े बड़े मकान होंगे उनके पास ! दोस्तों वह लोग गरीबों से विश्वासघात कर रहे हैं ! किसी का हक़ मारकर वो क्या अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा देंगे जबकि वो खुद भ्रष्टाचार में डूबे हैं !

और इन सबसे उपर एक बात और है ! आज सभी बड़े बड़े प्राइवेट स्कूल्स ने लॉबी बना ली है जिसके अंतर्गत उन्हें राजनैतिक सरंक्षण प्राप्त होता है ! आज आप स्कूल के नाम के साथ यह जरुर जुड़ा हुआ पाओगे की फलाना स्कूल फलानी पार्टी से जुड़ा है या उसे फलानी पार्टी का सरंक्षण प्राप्त है ! बड़े बड़े नेता इस गोरख धंधे में शामिल हैं ! पैसे लेकर बड़े से बड़े स्कूलों में एडमिशन करना आज आम बात है केवल स्टेटस देखा जाता है ! और यदि कोई स्कूल नियमों का पालन करके चलने की कोशिश करता भी है तो राजनीति से प्रेरित लोग नेताओं से धमकियाँ व प्रेशर डलवा कर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं !

कभी शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले स्कूल आज केवल भ्रष्टाचार और लूट का अड्डा बनते जा रहे हैं ! और यदि शिक्षा पर केवल अमीरों का ही अधिकार है तो गरीबों के लिए स्कीमें निकालने की ओप्चारिक्तायें क्यों ? क्या किसी गरीब को कोई हक़ नहीं की वो अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजिनियर, मेनेजर बनाने का ख्वाब संजोये ?

कभी तो वो दिन आएगा जब सबको सामान शिक्षा का अधिकार मिलेगा ! कभी तो वो दिन आएगा जब एक रिक्शा वाला कहेगा की मेरा बता डॉक्टर बन गया ! कभी तो वो दिन आएगा जब एक मजदूर की बेटी कहेगी मै वकील बन गयी !

पर कब ? कब होगा ये सब ? शायद ही कभी !


"प्रवीन बहल खुशदिल”


Thursday 11 June 2015

....नगरी भ्रष्टाचार की....

दो मंजिल मकान पर तीसरी मंजिल बनवा रहे थे शुक्ला जी । शाम होते होते बहुत थक चुके थे । रात को ही पुरे परिवार के साथ "नायक" फ़िल्म देखी । इतने प्रभावित हुए नायक की भूमिका देखकर की प्रण कर लिया के आज से कभी ना रिश्वत लेंगे ना देंगे । आखिर हर नागरिक का देश के प्रति भी कुछ फ़र्ज़ बनता है ।
 
सुबह सुबह नो बजे बिजली का बिल ठीक करवाने विभाग के दफ्तर पहुंचे । बिना बात बारह हज़ार का बिल भेज दिया था एक महीने का जबकि चार या पांच सौ से ज्यादा का नहीं आता था हर महीने । ये आधा किलोमीटर लंबी लाइन लगी थी। एक तो इतनी गर्मी ऊपर से इतनी लंबी लाइन । खीजते हुए लाइन में लग गए साहेब ।

ये क्या । नंबर आया तो टी-टाइम हो चुका था । गर्मी में खड़े खड़े जल रहे थे सब लोग। बस धुआं निकलना ही बाकी था। अरे - साहिब गलती से इतना बिल भेज दिया - शुक्ला जी बोले। घूर के खा जाने वाली नज़रों से देखते हुए चिल्ला के बोला कर्मचारी - ये तुम हमें सिखाओगे की क्या गलत भेजा क्या सही। और लाइन से बाहर कर दिया ।

जी तो किया मुहँ तोड़ दें उसका। पर कर ही क्या सकते थे ? कई जगह चक्कर काटने के बाद किसी तरह तीन हज़ार कम हुए उसपर भी अंदर के एक व्यक्ति ने हज़ार रुपये रिश्वत मांग ली। अब मरता क्या ना करता हज़ार रुपये दे ही रहा था उसे की। हाय री किस्मत । एक पुलिस वाले ने देख लिया पैसे देते। अब काटो तो खून नहीं । हड़काते हुए हाथ पकड़ के खींचता हुआ बोला - चल थाणे । रिश्वत दे रो है म्हारे सामणे । किसी तरह हज़ार रुपये देकर हाथ जोड़कर पीछा छुट्वाया ।

आज पता नहीं किसका मुंह देखा था सुबह सुबह । अभी घर जाने के लिए स्कूटर पर बैठकर रेड लाइट क्रॉस कर ही रहे थे की ट्रैफिक वाले ने भी हाथ दे ही दिया । लाइसेंस - कागज दिखा । अब कुछ हो तो दिखाएँ। गाडी बंद होगी रे। बस स्तिथि सँभालते हुए साइड ले गए। पुरे पांच सो में मामला पटा । सोचा लगे हाथ पोलुशन भी चेक करा लें और लाइसेंस भी बनवा लें। पचास, तीन सौ। ये कोई गाड़ी का नंबर नहीं बल्कि पचास की रिश्वत पोलुशन वाले ने और तीन सौ लाइसेंस वाले को दी । फीस अलग ।

जैसे तैसे घर पहुंचे तो पता चला इनकम टैक्स का नोटिस आया है। अकाउंटेंट को फोन किया की इनकम टैक्स नहीं भरा क्या अब तक ? बोला वो तो भर दिया उसी का तो चेक दिया था आपने छेह हज़ार और पांच सो कैश। अब कैश क्यों - ये तो आप समझ ही गए होंगे । तभी उसे ध्यान आया - बोला ध्यान से देखो । सर्विस या सेल्स टैक्स का होगा । मैंने भी बिना पेपर पड़े बोला - आजा भाई चेक और कैश लेने ।

पर आज तो जैसे शुक्ला जी पर कोई श्राप का ही असर था। डेवलपमेंट अथॉरिटी वाले घर आ धमके । रे ना तू नक्शा पास कराके मकान बना रिया और न हाउस टैक्स दिया पिछले साल का । मकान टूटेगा थारा ।

मरता क्या ना करता । 25000 रुपये देकर जान छुटी । अब तक फ़िल्म का नायक बनने का विचार धूमिल हो चूका था । फ़िल्म सिर्फ फ़िल्म ही होती है । बोले - कुछ नहीं हो सकता इस देश का । जहाँ नीचे से लेकर ऊपर तक। दायें से लेकर बाएं तक। आगे से लेकर पीछे तक सब भ्रष्टाचारी हैं। वहाँ केवल एक ही जगह है जहाँ भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल सकती है । प्रभु की शरण !

मन ही मन शुक्ला जी शुक्र मना रहे थे उपरवाले का की आज उनका सामना किसी वकील या अस्पताल से नहीं पड़ा अन्यथा एक मंजिल बनाने की जगह एक मंजिल बेचनी पड़ती ।


"प्रवीन बहल खुशदिल"

(इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं व वास्तविक जीवन से इसका कुछ लेना-देना नहीं है)

....पार्किंग कूड़े की....

 लाहोल विला कुव्वत, कम्बख्त कोन सुबह सुबह गधे की तरह रंभा रिया हे ! अरे, बेगम सुनती हो ! अशफाक मियाँ ने अलसाते और खीजते हुए जोर से आवाज़ लगाई !

तभी उनकी बेगम सायेरा दनदनाती हुई आईं ! उनके हाथ में झाड़ू थी ! हां कहिये मियाँ - क्या बात हे ?

अरे ये वक़्त बेवक्त कोन हे जो जोर जोर से चिल्ला रिया हे – अशफाक मियाँ ने पूछा ?

बेगम बोलीं - अरे वो दो घर छोड़कर जो वर्मा जी नहीं रहते उनकी बेगम की पड़ोस वाले मास्टर जी की बीवी से कूड़े को लेकर लड़ाई हो रही हे !

अशफाक मियाँ बोले - कैसे जाहिल लोग हैं – कूड़े को लेकर लड़ाई ? कैसा मोहल्ला हैं ? जरा सी बात पर लड़ाई ! अनायास ही कुछ याद आते ही अशफाक मियाँ फिर बोले ! हाँ - कल भी अखबार में आया था जोरबाग में कूड़े के झगडे को लेकर मर्डर हो गया !

बेगम स्तब्ध ! या अल्लाह – मर्डर !

लेक्चर देते हुए अशफाक मियाँ बोले - छोटी सी बात पर लड़ाई ! अरे साफ़ सफाई रखो हमारी तरह ! एक कूड़े वाला नहीं लगा सकते ?

तभी अंदर से अशफाक मियाँ के आठ साल के साहिबजादे बिस्कुट खाते हुए आये और बचा हुआ आखिरी बिस्कुट खाते ही झट से बचा हुआ कागज दूसरी मंजिल की खिड़की से नीचे फैंक दिया ! अब अशफाक मियाँ कभी बेगम को देखें तो कभी खिड़की को ! डर ये की कहीं पडोसी न आ जाये लड़ने ! इसी पशोपेश में थे मियाँ, कि तभी घर की घंटी बज गयी ! अब तो अशफाक मियाँ का रंग फ़क ! ये क्या किया शहजादे ? अनायास ही डर और टेंशन की लकीरों के बादल छा गए !

तभी जोर की आवाज आई ! अरी सायेरा – जरा अपने शोहर से कह दे हमारे दरवाजे से गाड़ी हटा ले ! कितनी बार कहा - कि हमारे घर के बाहर गाडी खड़ी न किया करें ! अपने आप को सँभालते हुए अशफाक मियाँ ने जोर से कहा – हटाते हैं ! कल ऑफिस से लेट हो गए थे किसी ने हमारे घर के सामने अपनी गाड़ी खड़ी कर दी थी ! तो हमने आपके यहाँ अपनी गाड़ी लगा दी ! पलटकर जवाब आया – अरे कल को घर में कूड़ा फैंकने की जगह नहीं होगी तो क्या हमारे यहाँ फेंकोगे ?

ये कैसा जवाब ? अशफाक मियाँ को गुस्सा तो बहुत आया – पर मर्डर वाली बात याद आते ही उनकी हवाइयां उड़ने लगीं ! वैसे भी वो अभी मरना नहीं चाहते थे ? उम्र ही क्या हैं - पैंतीस ? और फिर कूड़े के लिए कोन और क्यों मरे ?

इतवार के दिन भी चैन नहीं लेने देते ! किसी तरह गिरते पड़ते अशफाक मियाँ उठे और गाड़ी जैसे ही वहां से हटाई ! तूफ़ान मच गया ! अरे ये क्या – कोई गाडी के नीचे इतना सारा कूड़ा फैंक गया ! भाई साहिब – इसे हटाइए ! अभी के अभी इसे हटाइए ! वरना कहे देती हूँ ! अजी सुनते हो ! अरे ये आप क्या कर रही हैं ? भाई साहिब को क्यों कहती हैं हम हटाते हैं ! मरता क्या ना करता !

कभी पानी का गिलास ना उठाने वाले अशफाक मियाँ आज खुलेआम सड़क से कूड़ा उठा रहे थे ! वाह रि किस्मत ! ये दिन देखना रह गया था !

गुस्से में दनदनाते हुए अशफाक मियाँ बेगम से अभी आने की बात कहकर गाड़ी लेकर चल दिए ! मुंह से बढ़बढाये जा रहे थे ! आज – आज बदल ही डालूँगा ये घर ! किसी अच्छे मोहल्ले में जायेंगे ! यही सोचते सोचते जाने कब उनके दोस्त सलीम का घर आ गया ! सलीम का दबदबा बहुत था उसके इलाके में ! फ़ोन से उसे इत्तेला दी कि तुम्हारे घर के नीचे खड़े हैं !

अरे ! अशफाक मियाँ ! इतनी सुबह ? सब खैरियत तो हैं?

बताता हूँ ! बताता हूँ ! पहले अंदर तो ले चलो ! अशफाक मियाँ की आवाज़ में गुस्सा और चिडचिडापन दोनों था !

हाँ ! अब बताओ ! क्या बताएं सलीम मियाँ– और अशफाक ने सारी आपबीती सलीम को बता दी !

हम्म ! तो ये माजरा हैं ! इतने में चाय भी आ गयी ! लो चाय पियो !

अरे नहीं हमें चाय नहीं ! फ्लैट चाहिए !

हाँ हाँ – फ्लैट भी मिलेगा ! पहले चाय तो लो ! सलीम मियाँ ने कहा !

अशफाक मियाँ ने जल्दी से चाये का कप उठाया ! इतनी तेजी से चाये पी रहे थे की जैसे अभी पाँच मिनट में फ्लैट खरीद डालेंगे ! तभी फ्लैट की बेल बजी ! किसी ने दरवाजा खोला और एक हट्टे कट्टे व्यक्ति ने अंदर कदम रखते ही सख्त लहजे में बोलना शुरू कर दिया - अरे सलीम मियाँ आपसे कितनी बार कहा हैं पार्किंग से गाड़ी निकलने की जगह तो छोड़ दिया करो ! आपके यहाँ कोई आया हैं और गाडी आढी टेढ़ी कड़ी कर दी ! कहते हुए वो गुस्से से बाहर चला गया !

अशफाक मियाँ हैरानी भरी नज़रों से सलीम की और ताक रहे थे ! सलीम के चेहरे पर अजीब सी मुस्कराहट थी ! अब हमें सारा माजरा समझ आ गया ! जब सलीम जैसे दबंग इंसान भी इस समस्या से दो-चार हो रहे हैं तो अपनी क्या बिसात ! तभी सलीम मियाँ अशफाक की गाड़ी की चाबी टेबल से उठाते हुए खड़े हुए और बोले ! चलो चलते हैं मियाँ – तुम्हें फ्लैट दिखाने ! पर ऐसा फ्लैट – जहाँ पार्किंग, नाली और कूड़े की समस्या ना हो केवल एक जगह ही मिल सकता हैं अशफाक मियाँ ! अशफाक मियाँ ने उत्सुकतापूर्वक पूछा – कहाँ ?

चाँद पर ! सलीम ने कहा !

जोरदार ठहाकों के साथ सारा वातावरण गूँज गया !

बस इतनी सी थी ये कहानी – जिसमें हर गली, कूंचे में आपको कई अशफाक मियाँ मिल जायेंगे ! अब ये आपके उपर हैं की आप अपने आपको एडजस्ट करके समाज को सुधारने की कोशिश करेंगे या चाँद पर जायेंगे घर ढूँढने ?



“प्रवीन बहल खुशदिल”