Saturday 20 June 2015

....सबसे अमीर आदमी....

शहर के छोटे से बाज़ार की इक छोटी सी कपडे सिलने की दुकान ! मुंह से पान की टपकती लार और सर पर नेताओं जैसी टोपी ! यही तो थी दुकान के मालिक की पहचान ! जुम्मन मियाँ ! किसी फ़िल्मी कैरक्टर की तरह था उनका नाम और अंदाज़ भी !

काम चाहे हो ना हो पर भीड़ पूरी रहती थी जुम्मन मियाँ की दुकान पर !  सब के सब खिचाई में लगे रहते थे जुम्मन मियाँ की ! और जुम्मन मियाँ कुड़ते हुए मन ही मन सोचा करते – दिखा दूंगा बेटा एक दिन एक एक को, कि हम भी क्या चीज़ हैं !

आज कुछ ज्यादा ही चहक रहे थे जुम्मन मियाँ ! और चेह्कते भी क्यों ना आखिर शादी के लिए दुल्हे की शेरवानी सिलने का आर्डर जो मिला था पुरे दस हज़ार रूपए का ! और उस पर सोने पे सुहागा ये की कोठी नंबर १३ के जुनेजा साहिब के घर से आर्डर आया था !

कोठी नंबर १३. जी हाँ यही पहचान थी उस घर की पुरे शहर में ! काफी रुतबा था जुनेजा साहिब का ! टॉप के बिजनेसमैन – करोडपति !  जिस कोठी के अंदर लोग झाँकने में भी अपनी शान समझते थे आज उसी कोठी से जुम्मन मियाँ को आर्डर मिला था भाई ! फिर आना जाना और पुरे शहर में ढिंढोरा पिटना तो लाज़मी था ! बस ! जो भी निकला दुकान के आगे से उसी को पकड़कर ये राम कहानी सुनानी शुरू !

तभी बिखरे बिखरे बाल, चश्मा लगाये वा लम्बा सा झोला लटकाए एक अधेड़ उम्र का शख्स वहां से निकल रहा था ! जुम्मन मियाँ ने सोचा – बाकी सब तो अच्छे ठीक ठाक हैसियत वाले लोग हैं हमारे संपर्क में कोई हमारी सुनता नहीं ! ये मियाँ तो फ़कीर की तरह दिखते हैं ! यही मोका हैं – अपना रुतबा दिखाने का ! और लगभग जबरदस्ती वाले अंदाज़ में रोकते हुए जुम्मन मियाँ बोल पड़े ! अरे ! रवि बाबु ! कैसे हो ?

शांत वा अपने आप मे खोये उस व्यक्ति की शख्सियत और चेहरे का तेज अनायास ही उसकी और आकर्षित कर रहा था ! जी हाँ – रवि कपूर नाम था उस शख्स का ! शायद आज तक उन्हें बात करते नहीं देखा गया था किसी से भी ! अभी सिर्फ चार या पाँच महीने पहले ही आये थे कहीं से ! पच्चीस गज के छोटे से मकान में रहते हैं रवि बाबू !

जुम्मन मियाँ शायद आज ही उन्हें पूरी तरह अपने अंटे में ले लेना चाहते थे ? पूरा अपनापन दिखाना चाह रहे थे !  एक स्पेशल चाय ला भेई छोटू – पहली बार आये हैं - रवि बाबु हमारी दुकान पर ! उसके बाद वही राम कहानी शुरू ! जितनी ख़ुशी उन्हें शेरवानी सिलने के आर्डर की थी उससे कही ज्यादा शादी के न्योते और उस शादी कार्ड की थी जो कोठी नंबर १३ से आया था ! कार्ड भी अपने आप में रहीसी की बानगी पेश कर रहा था !
रवि बाबु को पूरी राम कहानी सुनाने के बाद जुम्मन मियाँ उनका हाथ पकड़कर बोले ! आपको भी चलना होगा हमारे साथ शादी में !

अवाक रह गए रवि बाबु यह बात सुनकर जुम्मन मियाँ के मुहं से ! शायद जरा भी अंदाजा नहीं था रवि बाबु को, कि जुम्मन मियाँ उन्हें ऐसे भी आमंत्रित कर सकते हैं अपने साथ चलने को ! रवि बाबु ने लाख मना किया पर जुम्मन मियाँ तो जैसे आज उनपर अपना सारा प्यार न्योछावर करने पर आमादा थे !

उस रात दस तो दुकान बंद करने में ही लग गए थे जुम्मन मियाँ को ! इसलिए लेट तो पहले ही हो चुके थे ! पर माशाल्लाह ! क्या शादी थी ! बड़े बड़े कलाकार गाते हुए ! नाचते हुए ! लोक संगीत के वाध्य यन्त्र बजाते कई सो कलाकार ! पाँचसों तरीके का तो खाना था ! उफ्फ !

कम से कम बीस करोड़ तो लगाया होगा ? जुम्मन मियाँ ने ख़ामोशी तोडते हुए कहा !

हाँ ! लगभग ! रवि बाबु ने धीरे से कहा !

जुम्मन मियाँ ने रोब से अपनी शान बघारते हुए कहा – देखा रवि बाबु कितनी और कैसे रहीस लोगों से जान पहचान हैं अपनी !

धीरे से हाँ में गर्दन हिलाते हुए मुस्कुरा दिए रवि बाबु !

लगभग साड़े ग्यारेह बज गए खाना खाते खाते ! कभी इतना लज़ीज़ खाना खाया हे रवि बाबु ! एक बार फिर शेखी बघारते हुए बोले जुम्मन मियाँ !

वापसी होने को ही थी की अचानक रवि बाबु ने सुना (शायद वो इसी की प्रतीक्षा में कान लगाये बैठे थे) की खाने वाला जुनेजा साहिब से कह रहा था – सर ! पाँच हज़ार लोगो का खाना बनवाया था और आये चार हज़ार भी नहीं !

जुनेजा साहिब रोब से बोले – कोई बात नहीं ! बचा हुआ खाना फैंक दो !

तभी बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़ते हुए रवि बाबु जुनेजा साहिब के पास जाकर बोले ! सर ! यदि इज़ाज़त हो तो एक निवेदन करना चाहूँगा ! जुनेजा साहिब ने उपर से नीचे तक रवि बाबु को निहारा ! बोलिए !

उधर जुम्मन मियाँ हैरान, परेशान और घबराये हुए सोच रहे थे ! अबे मरवा दिया ! क्या बोलना चाह रिया है ये – वो भी जुनेजा साहिब से ! बैचैनी सातवें आसमान पर थी !

जी आप ये खाना फैंकिए मत ! किसी भूखे के काम आ जायेगा ! रवि बाबु आग्रह करते हुए बोले !
पर इस समय इतने लोग कहाँ .....

जुनेजा साहिब की बात बीच में ही काटते हुए रवि बाबु बोले ! और हाँ जुनेजा साहिब – एक सलाह देना चाहूँगा की जितना पैसा आपने इस शादी में लगाया हैं उसके आधे में भी आप यह सब कर सकते थे और बाकी गरीबों और जरुरतमंदों के लिए लगा देते तो आपको दुआएं मिलती !

सब अवाक् ! जुम्मन मियाँ के चेहरे पर तो हवाइयां उड़ने लगीं !

व्हाट डू यू मीन ? आप होते कोन हैं मुझसे ऐसे बोलने वाले ? किसके साथ आये हो ? कोन हो ? कोन हो आप ? जुनेजा साहिब की आवाज में कड़कपन, घमंड व गुस्सा था ! वो जोर जोर से चिल्ला रहे थे !

अबे मरवा दिया ! अबे लुट गया ! अबे क्यूँ ली आया इसे साथ में ! जुम्मन मियाँ धीरे धीरे बुदबुदाये जा रहे थे !

अचानक सूट बूट में हाथ में कोल्ड ड्रिंक का गिलास लिए एक व्यक्ति आगे आकर बोला ! अरे ये तो रवि जी हैं – रवि कपूर !

बहुत बड़े इंडस्ट्रीलिस्ट थे ये ! अरबोपति !

सभी अवाक !

उस व्यक्ति ने आगे बोलना जारी रखा ! जी हाँ – इनका नाम तो पूरी दुनिया में है की किस तरह इनके दोनों बच्चे एक भयानक रोड एक्सीडेंट का शिकार होकर चल बसे और इन्होने अपनी अरबों की दौलत गरीबों को समर्पित कर दी व अपना आगे का पूरा जीवन अपनी NGO बनाकर लोगों की सेवा में लगा दिया ! एक ही सांस में उस व्यक्ति ने अपनी बात कह डाली !

कुछ क्षणों के लिए पूरी तरह सन्नाटा छा गया !

तभी जुनेजा साहिब आगे बड़े और रवि जी से माफ़ी मांगते हुए बोले – सॉरी ! रियली सॉरी रवि जी ! मुझे आपसे ऐसे वर्ताव नहीं करना चाहिए था !

नहीं नहीं कोई बात नहीं ! रवि बाबु बोले !

रवि जी - में आपसे आज ये वादा करता हूँ की अपने बाकि दोनों बच्चों की शादी सादगी से करूँगा और जरुरत मंदों की मदद भी करता रहूँगा ! जोरदार तालियों के साथ वातावरण गूँज उठा !

उधर जुम्मन मियाँ की आँखों में आसुओं का सैलाब उमड़ आया ! अपने दोनों हाथों से अपना मुंह ढककर आगे बड़ते हुए जुम्मन मियाँ रवि बाबु से लिपट गए !

रवि बाबु उन्हें चुप करने की कोशिश कर रहे थे !

मुझे ! मुझे माफ़ कर दो रवि बाबू मेनें आपको बेकार और निर्धन व्यक्ति समझा ! अरे आप तो दुनिया के सबसे अमीर इंसान निकले - दिल के अमीर ! लगातार रोये जा रहे थे जुम्मन मियाँ !

जुम्मन मियाँ की पीठ पर प्यार से हाथ फेरने लगे रवि बाबू ! तब तक रवि बाबु की NGO  से बच्चे भी खाना खाने आ चुके थे ! जिनके लिए आज खाना नहीं बनाया गया था क्योंकि रवि बाबु अमीरों की आदतों से भली भाँती परिचित थे ! 

एक कोने में जाकर बैठने के बाद रवि बाबु भरी आँखों से आकाश की और देखते हुए सोचने लगे – देखा बच्चों ! एक और जीत हासिल कर ली मेनें !

लेकिन ये लड़ाई तब तक जारी रहेगी !

जब तक हैं जान ! जब तक हैं जान ! जब तक हैं जान !


“प्रवीन बहल खुशदिल”



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