
अचानक मानो प्रलय आ गयी हो। कहर टूट पड़ा उस परिवार पर। सिर में
चक्कर आने पर सभी टेस्ट की रिपोर्ट आई थी आज। माँ का कलेजा रो-रो कर मुंह को आ रहा
था।
हह । भगवान् भी कैसी-कैसी परीक्षा लेता है। एक ऐसी बीमारी निकली
वैभव को जिसका इलाज़ केवल दिल्ली के हॉस्पिटल में था । नोकरी से एक महीने की छुट्टी
लेके पाठक जी वैभव को लेके अस्पताल आये। पर ये क्या ? बुरा हाल भीड़ से। सैंकड़ों, हज़ारों मरीज़ों की लंबी कतार
। किसी तरह तीन दिन रुक के ऑपरेशन की तारीख मिली वो भी - एक वर्ष पश्चात।
आशा जी गुस्से से भरी पाठक जी को खरी-खोटी सुना रही थीं। कहा था
ना। कहा था ना मुझे ले चलो साथ। मैं उनके आगे झोली फैलाकर भीख मांग लुंगी अपने
बेटे की ज़िन्दगी के लिए। और फिर सारा दिन यही सब चलता रहा उस घर में। आखिर में तय
हुआ की एक और कोशिश तीनो मिलके करेंगे। घर में ताला जड़कर निकल पड़े मन में भरोसा
लिए तीनों।
आज पन्द्रहवां दिन था उनका। हॉस्पिटल के बाहर सड़क पर किसी तरह दिन
गुजार रहे थे । जी हां। यही हाल था उस हॉस्पिटल का। दिल्ली के बाहर से आये लोग
किसी जानवर की भांति सड़कों पर खुले आकाश में सोने को मजबूर थे ।
पाठक जी सोच रहे थे । क्या रुतबा है हमारा हरिद्वार में। और यहाँ
यहाँ कुत्ते से भी बदतर जिंदगी बितानी पढ़ रही है। ऊपर से जब तब देखो एक चपरासी भी
दुत्कार जाता है आके। फिर पैसे भी ख़त्म हो रहे थे उनके।
तभी उन्ही की तरह बाहर से आये किसी परिवार ने उन्हें बताया की
दिल्ली के पास ही एक प्राइवेट हॉस्पिटल है। बहुत साफ़ सुथरा। बाहर की टॉप क्लास
मशीनें है वहाँ । पर खर्च बहुत होगा। ये सब सुनकर उनके मन में आस जगी।
आशा जी ने तो मन ही मन निर्णय ले ही लिया था की घर बैच देंगे।
हरिद्वार जाकर 65 लाख में मकान बेचकर वैभव को एडमिट करवाये आज 10 दिन हो चुके थे। आज उसका ऑपरेशन था।
कोई भी अंदर ना जा सकता था । अपने चिराग को देखने की बहुत तमन्ना
थी आशा जी को । पुरे 6 घंटे चला ऑपरेशन । मजाल है जो पुरे वक़्त एक मिनट को भी हिली हों
आशा जी। पुरे 6 घंटे प्रभु से वैभव की सलामती की दुआ मांगती रहीं।
आज चार दिन बीतने पर भी मिलने नहीं दे रहे थे वैभव से। वेन्टिलैटर
पर है - बस यही जवाब था । 32 लाख रूपए लग चुके थे।
अचानक पांचवे दिन उनकी दुनिया उजड़ गयी। वैभव चल बसा । माँ बदहवास ।
पाठक जी - अवाक। सब खत्म ।
तभी वहां विजिलेंस का छापा पड़ा और पाया गया की न सिर्फ लोगों के
अंग बैचे जा रहे थे बल्कि मृत्यु के बाद भी 5&5 दिन शव को वेंटीलेटर पर रखा
जा रहा था।
पाठक जी मिडिया के सामने बोले चले जा रहे थे - सिर्फ पैसे के लिए ।
पैसे के लिए ये डॉक्टर आज भगवान् से शैतान बनते जा रहे हैं। अच्छा हुआ मेरा वैभव
चला गया । वर्ना वो भी शायद ऐसा दानव ही बनता। है प्रभु - तू इतना निर्मम कैसे हो
सकता है।
तभी उनकी नज़र चरों तरफ गयी। चीख पुकार मची हुई थी। सैंकड़ों वैभव उस
हॉस्पिटल की भेंट चढ़ गए थे। आज कुछ डॉक्टर्स के लालच की वजह से पूरा प्रोफेशन
कलंकित हो चुका था।
एकांत में जाकर आँखे मूंदकर पाठक जी पूछ रहे थे उपरवाले से - है
प्रभु । क्या इस रात की कभी सुबह होगी ? क्या इस अत्याचार से कभी
मुक्ति मिलेगी ? आज से आप भी मेरा साथ दीजिये और मैं प्रण करता हूँ मैं और आशा लड़ते
रहेंगे इन भेड़ियों से तब तक :-
जब तक है जान। जब तक है जान। जब तक है जान।
"प्रवीन बहल खुशदिल"
प्रवीन भाई .........
ReplyDeleteमृत्यु के बाद भी 5&5 दिन शव को वेंटीलेटर पर रखा जा रहा था।
आज कल ये आम बात है निजि अस्पताल में अक्सर ये देखने को मिलता है ...
बेहद शर्मनाक है पैसे के बरअक्स इंसान की कीमत ना रही :(