
मानो कल ही की बात हो । समाज के लोग आपस में विचार
विमर्श करके किसी भी विवाद को थाने पहुँचने से पहले ही आपस में निपटा लेते थे । मन
में एक दूसरे के प्रति सम्मान होता था । दूसरे के दर्द को अपना समझा जाता था ।
लोगों में सहनशीलता थी ।
आज ! आज ना वो समाज है । ना दर्द समझने के लिए वो दिल ।
अपनों को अपना नहीं समझा जाता आज । फिर दूसरों की मदद करना तो बेवकूफी कहा जाता है
। ना ही लोगों में सहनशीलता दिखती है ।
दो-दो रूपए के लिए खून कर दिया जाता है...