Tuesday 26 May 2015

अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो

किसी के घर जब बेटी का जन्म होता है तो हर ओर यही स्वर गूंजता है - मुबारक हो लक्ष्मी आई है। वही बेटी बड़ी होकर अच्छी तालीम हासिल कर ले तो कहा जाता है - साक्षात सरस्वती है और यदि कोई बेटी बहादुरी का काम कर जाए तो कहते हैं - दुर्गा का रूप है!

किन्तु सत्य यह है कि यह सब केवल जुमले बन कर रह गए हैं। सदियों से चला आ रहा नारी का उत्पीड़न उसका तिरस्कार आज भी ज्यों का त्यों है। केवल उसे शोषित करने के तरीकों में बदलाव आते रहे हैं। जहाँ राजाओं के काल में उन्हें दासी बनाके उनका शोषण किया जाता था, वहीँ दशकों पहले उन्हें पति की मृत्यु के बाद उसी के साथ "सती" हो जाना पड़ता था। वहीँ बाल विवाह जैसी प्रथा नारी के लिए दुःस्वप्न से कम ना थी, किंतु यह था सत्य, कोई स्वप्न नहीं।

दुःख की परकाष्ठा तो तब महसूस की जा सकती है कि आज भी जब हम अपने आपको विकसित देशों के बराबर नई सोच का या आधुनिक युग का इंसान कहते है, इस युग में भी महिलाएं उपेक्षित हो रही हैं। आज भी उन पर अत्याचार हो रहा है। फिर चाहे वो दहेज़ प्रथा को लेकर हो या पुरुषों की घिनौनी मानसिकता के कारण। दंड तो केवल और केवल एक महिला को ही भोगना पड़ता है। 


हर नारी के मन में कभी न कभी यह विचार या कुंठा जरूर उत्पन्न हुई होगी कि - हे प्रभु! तूने मझे बेटी के रूप में जन्म क्यों दिया? अपने पुरे जीवनकाल में वो कई बार मरती है। चाहे किसी राक्षस की ललचाती नज़रों से बचने के लिए खुद को खुद में ही समेटना हो या शादी के बाद किसी अन्जान शख्स (शौहर) के लिए अपने माँ-बाप व परिवार का त्याग। दहेज़ के लिए मारने का भय हो या संतान के समय होने वाली असहनीय पीड़ा। इनमें से कोई भी वजह मौत का कारण बन सकती है। यह भय हर समय व्याप्त रहता है।

तुर्रा, उस पर यह कि यदि सब ठीक भी रहा तो कभी बच्चों को स्कूल भेजना, उनको पढ़ाना, शौहर का नाश्ता, ऑफिस का खाना, कपडे, बर्तन, सफाई..... ओह्ह्ह ! जीती कब है वह अपनी जिंदगी?

वहीँ बात बेटों कि की जाये तो वल्लाह! जैसे साहिबजादे ऊपर से ही वसीयत लिखवा के लाये हैं, भरपूर मौजमस्ती वा शाही जीवन की। कोई बंदिश ही नहीं, दोस्तों के साथ लेट नाईट पार्टी हो या किसी लड़की के साथ चक्कर.... यह सब छोटी बात हैं! कोई रोकटोक नहीं, और हो भी क्यों - माशाल्लाह घर के चिराग जो हैं साहिबजादे। हद तो तब हो जाती है जब साहिबजादे अपने घर को तो घर समझते हैं पर दोस्तों के साथ यदि बाइक से गली में निकले तो ये मोटी-मोटी गालियां वो भी लाउडस्पीकर जैसी जोरदार आवाज में - भई अपना घर और गली नहीं है ना।

सलाम करता हूँ मैं एक बेटी को, एक पत्नी को, एक माँ को! नारी के जीवन की कठिनाईयो को महसूस करना चाहता हूँ मैं! आकाश की गहराइयों में निहारते हुए खुदा से ये दुआ करता हूँ की "अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो"

- प्रवीन बहल 'खुशदिल'

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