Wednesday, 16 September 2015

--इंसान या नरपिशाच—

मानो कल ही की बात हो । समाज के लोग आपस में विचार विमर्श करके किसी भी विवाद को थाने पहुँचने से पहले ही आपस में निपटा लेते थे । मन में एक दूसरे के प्रति सम्मान होता था । दूसरे के दर्द को अपना समझा जाता था । लोगों में सहनशीलता थी । आज ! आज ना वो समाज है । ना दर्द समझने के लिए वो दिल । अपनों को अपना नहीं समझा जाता आज । फिर दूसरों की मदद करना तो बेवकूफी कहा जाता है । ना ही लोगों में सहनशीलता दिखती है । दो-दो रूपए के लिए खून कर दिया जाता है...